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बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥ बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥ दुर्गम काज जगत के जेते ।
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
श्री सीताराम जी के चरणों में प्रीति और भक्ति प्राप्त हो जाय यही जीवनफल है। यह प्रदान करने की क्षमता श्री हनुमान जी में ही है।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार॥
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भावार्थ – आपकी शरण में आये हुए भक्त को सभी सुख प्राप्त हो जाते हैं। आप जिस के रक्षक हैं उसे किसी भी व्यक्ति या वस्तु का भय नहीं रहता है।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥ और देवता चित्त न धरई ।
भावार्थ – आप सारी विद्याओं से सम्पन्न, गुणवान् और अत्यन्त चतुर हैं। आप भगवान् श्री राम का कार्य (संसार के कल्याण का कार्य) पूर्ण करनेके लिये तत्पर (उत्सुक) रहते हैं।
व्याख्या – उपमा के द्वारा किसी वस्तु का आंशिक ज्ञान हो सकता है, पूर्ण ज्ञान नहीं। कवि–कोविद उपमा का ही आश्रय लिया read more करते हैं।
SūkshmaSūkshmaMicro / minute / little rūpaRūpaForm / system / shape dhariDhariAssuming siyahiSiyahiSita, Wife of Lord Rama dikhāvāDikhāvāTo show up
दक्षिण भारत की प्रदिद्ध बाल गायिका सूर्यगायत्री के मुख से हनुमान चालीसा पाठ
व्याख्या – श्री हनुमान जी महाराज की शरण लेने पर सभी प्रकार के दैहिक, दैविक, भौतिक भय समाप्त हो जाते हैं तथा तीनों प्रकार के आधिदैविक, आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक सुख सुलभ हो जाते हैं।